अश्कों की कहानी

दिल के कोठर में बसा दर्द
बहता है बनके अश्क
कोशिश करती हूँ बहुत इन्हें रोकने की
पर ये व्याकुल इज़ाज़त न दें पोंछने की
ये अपनों के दर्द में भी बहते हैं
अपने दर्द में भी निकल आते हैं
कुछ होश नहीं इन्हें अपना
ये ख़ुशी और गम दोनों में बह जाते हैं
ये कन्धा ढूंढते हैं अपना स्थान बनाने को
जो मिल जाए वो सहारा
तो और भी व्याकुल हो जाते हैं
सारी दुनिया का प्यार पाने को
सपने टूटते हैं तो भी इन्ही का सहारा है
अपने छूटते हैं तो भी इन्ही का आसरा है
जीवन में हालात कुछ भी हों
किसी का साथ हो न हो
अश्कों से नाता है हमारा सबसे गहरा
देते हैं ये साथ सदा चाहे दिन हो या हो सहरा

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